दीप
A carved out tongue of flame, silently devouring the air around it. दिए की वो बाती एक समर्पित परिक्रमा में संलग्न । The sanctum...
फ़रार हूँ
कल सुबह जब , मैं उठा था , खिड़कियों से झाँक कर के गुनगुनी सी धूप पड़ते , यूँ लगा कि ज़िन्दगी का प्यार हूँ। इस सुबह , फ़रार हूँ। उस...
तुम
बड़े दिनों से दुनिया ने हमें जोड़ -जोड़ के बक्से में बचा के रक्खा था। सोचा था, कुछ ख़ास खरीदेगी दुकान कि खिड़की में वो घड़ी, या कहीं...
नींद
बड़ी देर से नींद खुली है, चाहता हूँ कि वापस सो जाऊँ। बहुत कोशिश की, पर उठा भी दिनों में हूँ, अब बदन पड़ा है। पर दिल को, उठना मंज़ूर...
Other Admirers
मैं धर्माधिकारी नहीं हूँ। पर मुझे चिड़ हो गयी है। चिड़ कहूँ ? या घिन ? शायद नफ़रत ? मैं ये क्यूँ लिखूँ ? क्या फ़ायदा? और वो भी एसी...
हामेला
फ़क़त ये लव्ज़ थे जो तस्सवुर को हामेला करते थे। अब ये लव्ज़ भी बाँझ हैं, और तस्सवुर भी।
फ़र्क
क्या फ़र्क पड़ता है? धुएँ से. भूख से. गड्ढों से झांकती खाली आँखों से. क्या फ़र्क पड़ता है किसी की रोती कहानी से. किसी के आँसूओं से खुद...