top of page

तुम

बड़े दिनों से दुनिया ने हमें जोड़ -जोड़ के बक्से में बचा के रक्खा था। सोचा था, कुछ ख़ास खरीदेगी दुकान कि खिड़की में वो घड़ी, या कहीं पहाड़ों में छुट्टियाँ , शायद बटुए में कुछ दिन रख के रहीसी ही झाड़ लेगी , किसी दिन शायद कोई ज़रूरत पड़ जाए ? या एक दिन जब इतनी अमीर हो जाए, कि हमारी कीमत मामूली लगे । या फिर शायद हमको उम्र भर बचा कर झूठी उम्मीदों का सुकून ही मिल जाता। पर आज देखा तो, हम तुम पर फ़िज़ूल ही खर्च हो गए थे।


Comments


Recent Posts
Archive
bottom of page