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तुम

बड़े दिनों से दुनिया ने हमें जोड़ -जोड़ के बक्से में बचा के रक्खा था। सोचा था, कुछ ख़ास खरीदेगी दुकान कि खिड़की में वो घड़ी, या कहीं पहाड़ों में छुट्टियाँ , शायद बटुए में कुछ दिन रख के रहीसी ही झाड़ लेगी , किसी दिन शायद कोई ज़रूरत पड़ जाए ? या एक दिन जब इतनी अमीर हो जाए, कि हमारी कीमत मामूली लगे । या फिर शायद हमको उम्र भर बचा कर झूठी उम्मीदों का सुकून ही मिल जाता। पर आज देखा तो, हम तुम पर फ़िज़ूल ही खर्च हो गए थे।


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